के बाद हिंदी कथा साहित्य में आम आदमी के जीवन को जगह देने और ग्रामीण जीवन को पुनर्स्‍थापित करने वाले महत्वपूर्ण कथाकार मार्कण्डेय जी नहीं रहे। उनका जन्‍म उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के बराई गांव में दो मई 1930 को हुआ. जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से एक मार्कण्‍डेय जी ने 1965 में 'माया' पत्रिका के साहित्य विशेषांक का संपादन किया था, जो हिन्‍दी कहानी के लिए मील का पत्‍थर साबित हुआ. इसके बाद उन्‍होंने 1969 से साहित्यिक पत्रिका 'कथा' का संपादन शुरू किया। इसके अभी तक 14 अंक ही निकल पाए हैं। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस पत्रिका का सम्‍मानित स्‍थान है। अग्निबीज, सेमल के फूल(उपन्यास), पान फूल, महुवे का पेड़, हंसा जाए अकेला, सहज और शुभ, भूदान, माही, बीच के लोग (कहानी संग्रह), सपने तुम्हारे थे (कविता संग्रह), कहानी की बात (आलोचनात्मक कृति), पत्थर और परछाइयां (एकांकी संग्रह) आदि उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं।
हिन्‍दी कथा साहित्‍य के इस शिखर पुरूष को हार्दिक श्रृद्धांजलि.

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